• Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 57

  • 2024/12/21
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Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 57

  • サマリー

  • भगवद्भक्ति में चित्त को स्थिर करो | श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 18 श्लोक 57

    Description:
    श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 18 के श्लोक 57 में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि सभी कर्मों को मुझमें समर्पित करके मुझ पर केंद्रित हो जाओ। बुद्धियोग का आश्रय लेकर अपने मन को मुझमें स्थिर करो। यह श्लोक समर्पण, भक्ति, और आत्मनियंत्रण की महत्ता को स्पष्ट करता है।

    Tags:
    श्रीमद्भगवद्गीता, कर्मयोग, भगवान श्रीकृष्ण, समर्पण, भक्ति योग, आत्मसंयम, अध्यात्मिक ज्ञान, भगवत भक्ति, मोक्ष प्राप्ति, जीवन का उद्देश्य, सनातन धर्म, कृष्ण भक्ति, बुद्धियोग, कर्म समर्पण

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あらすじ・解説

भगवद्भक्ति में चित्त को स्थिर करो | श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 18 श्लोक 57

Description:
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 18 के श्लोक 57 में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि सभी कर्मों को मुझमें समर्पित करके मुझ पर केंद्रित हो जाओ। बुद्धियोग का आश्रय लेकर अपने मन को मुझमें स्थिर करो। यह श्लोक समर्पण, भक्ति, और आत्मनियंत्रण की महत्ता को स्पष्ट करता है।

Tags:
श्रीमद्भगवद्गीता, कर्मयोग, भगवान श्रीकृष्ण, समर्पण, भक्ति योग, आत्मसंयम, अध्यात्मिक ज्ञान, भगवत भक्ति, मोक्ष प्राप्ति, जीवन का उद्देश्य, सनातन धर्म, कृष्ण भक्ति, बुद्धियोग, कर्म समर्पण

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