• Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18

  • 著者: Yatrigan kripya dhyan de!
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Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18

著者: Yatrigan kripya dhyan de!
  • サマリー

  • "Welcome to Shri Bhagavad Gita: Chapter 18 Shlokas, where we explore the timeless wisdom of श्रीकृष्ण as revealed in the 18th chapter of the Bhagavad Gita. Chapter 18, also known as Moksha Sannyasa Yoga (मोक्ष संन्यास योग), is one of the most profound chapters, discussing the paths of renunciation (संन्यास) and duty (कर्मयोग). Each episode delves into the shlokas of this chapter, offering a detailed explanation of the original Sanskrit text followed by a meaningful Hindi translation. We explore Lord Krishna’s teachings on how to live a life of selfless action, detachment from the fruits of wo
    Yatrigan kripya dhyan de!
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あらすじ・解説

"Welcome to Shri Bhagavad Gita: Chapter 18 Shlokas, where we explore the timeless wisdom of श्रीकृष्ण as revealed in the 18th chapter of the Bhagavad Gita. Chapter 18, also known as Moksha Sannyasa Yoga (मोक्ष संन्यास योग), is one of the most profound chapters, discussing the paths of renunciation (संन्यास) and duty (कर्मयोग). Each episode delves into the shlokas of this chapter, offering a detailed explanation of the original Sanskrit text followed by a meaningful Hindi translation. We explore Lord Krishna’s teachings on how to live a life of selfless action, detachment from the fruits of wo
Yatrigan kripya dhyan de!
エピソード
  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 61
    2024/12/25

    ईश्वरः सर्वभूतानां - भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 61 | Shrimad Bhagavad Gita 18.61

    Description:
    भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: "हे अर्जुन! परमेश्वर सभी जीवों के हृदय में विराजमान हैं और अपनी दिव्य माया से उन्हें यंत्र पर चढ़े हुए प्राणियों की तरह संचालित करते हैं।" यह श्लोक ब्रह्मांड की परम शक्ति और जीवों के साथ उसके अटूट संबंध को दर्शाता है।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 60
    2024/12/24

    स्वभावजेन कौन्तेय - भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 60 | Shrimad Bhagavad Gita 18.60

    Description:
    भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: "हे कौन्तेय! तुम अपने स्वभाव के अनुसार अपने कर्मों से बंधे हुए हो। मोहवश जो कार्य करने की इच्छा नहीं रखते, वह भी तुम्हें अवश्य करना पड़ेगा, क्योंकि प्रकृति तुम्हें उससे बांधती है।" यह श्लोक कर्तव्य, स्वभाव, और नियति की अपरिहार्यता को दर्शाता है।

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    भगवद गीता, गीता श्लोक, श्रीमद भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 60, स्वभाव का बंधन, कर्म का नियम, जीवन का सत्य, धर्म का पालन, आत्मज्ञान, श्रीकृष्ण के उपदेश, आध्यात्मिक मार्गदर्शन।

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    1 分
  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 59
    2024/12/23

    अहम् का मोह और प्रकृति का प्रभाव - भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 59 | Shrimad Bhagavad Gita 18.59

    Description:
    भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: "यदि तुम अहंकार के प्रभाव में आकर सोचते हो कि युद्ध नहीं करोगे, तो यह तुम्हारा मिथ्या विचार है। प्रकृति के नियमों से बंधे हुए तुम अवश्य वही करोगे, जो तुम्हारी प्रकृति द्वारा निर्धारित है।" यह श्लोक कर्तव्य, अहंकार के भ्रम और प्रकृति के अटल नियमों को समझाता है।

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    #BhagavadGita #GeetaShlok #DutyAndDestiny #EgoAndNature #KrishnaWisdom #SpiritualAwakening #LifeLessons #KarmaPhilosophy #SelfRealization #भगवद्गीता #श्रीकृष्ण #कर्तव्यबोध #अहंकार #प्रकृति_का_प्रभाव #आध्यात्मिकज्ञान

    Tags:
    भगवद गीता, गीता श्लोक, अध्याय 18, श्लोक 59, श्रीकृष्ण उपदेश, कर्तव्य और भाग्य, आत्मज्ञान, अहंकार का त्याग, धर्म और जीवन के सिद्धांत, भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिक ज्ञान।

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    1 分

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